Panchakarma

पंचकर्म पद्धति (Panchakarma Therapy) आयुर्वेद चिकित्सा की सबसे पुरानी पद्धतियों में से एक है। पंचकर्म पद्धति का सबसे ज्यादा उपयोग दक्षिण भारत में देखने को मिलता है। पंचकर्म अर्थात पांच प्रकार की ऐसी चिकित्सा जिसमें शरीर के दोष (विषाक्त पदार्थों) बाहर निकाले जाते है। पंचकर्म एक डिटॉक्स प्रक्रिया है।

अधिकांश लोगों के मन में आयुर्वेद (Ayurveda) को लेकर यह सवाल उठता है कि यह बहुत पुराना विज्ञान है और इसकी दवाएं काफी कड़वी होती है। तथा इलका इलाज लम्बी अवधि तक चलता है। इसके अलावा आयर्वेद के इलाज से धीरे-धीरे आराम लगता है। जबकि ये धारणा बिल्कुल गलत है। यह चिकित्सा विज्ञान बहुत पुराना है परंतु इसकी चिकित्सा बहुत ही कारगर है।

पंचकर्म चिकित्सा (Panchakarma Therapy) के द्वारा शरीर को डिटॉक्सीफाई (शुद्धिकरण) करके प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने का सबसे अच्छा माध्यम है। विशेषज्ञों के अनुसार, पंचकर्म के द्वारा शरीर के साथ-साथ मन का भी उपचार किया जाता है। हर इंसान को एक वर्ष में एक या दो बार पंचकर्म जरूर करवाना चाहिए। पंचकर्म करवाने से शरीर में मौजूद विषाक्‍त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिससे बीमारी होने

पंचकर्म को तीन भागों में बांटा गया है:

  • पूर्वकर्म
  • प्रधानकर्म
  • पश्चात कर्म

पूर्वकर्म: यह प्रारंभिक प्रक्रिया है जो पेट और ऊतकों में मौजूद विषाक्त पदार्थों को त्यागने में मदद करती है और विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर करके उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में मजबूती लाती है। इसमें निम्न प्रक्रियाएं शामिल हैं।

दीपन-पाचन: आचार्य चरक के अनुसार हजामा (Digestive System) को दुरुस्त रखने के लिए पेट के विकार को दूर करना बहुत ही आवश्यक होता है। दीपन-पाचन कर्म में कुछ ऐसी औषधियों का सेवन करवाया जाता है जिससे मावन शरीर का पाचन तंत्र मजबूत बनें।

स्नेहन: इस कर्म के अंतर्गत शरीर में तेलों की मसाज (अभ्यंग) के द्वारा रोग को ठीक किया जाता है। यह मसाज तेल, घी, वसा एवं मज्जा के द्वारा की जाती है।

स्वेदनम: स्वेदनम का तात्पर्य शरीर से पसीना निकालने कि चिकित्सा है। इस पद्धति में कुछ औषधियों के प्रयोग से शरीर में जमा विषैले पदार्थों को पसीने के रुप में बाहर निकाले जाते हैं जिससे शरीर का शुद्धिकरण हो जाता है।

पंचकर्मा पद्धति के पांच प्रमुख प्रकार

  • वमन
  • विरेचन
  • नस्‍यम्
  • बस्ती
  • रक्तमोक्षण

पंचकर्म चिकित्सा के इन पांचों कर्मों को विस्तार पूर्वक समझें

वमन

इस प्रक्रिया में शरीर में जमे विशैल पदार्थों को आयुर्वेदिक औषधियों के माध्यम से बाहर निकाला जाता है। यह विशैले पदार्थ उल्टी के माध्यम से शरीर के बाहर आ जाते है। वमन पद्धति उन मरीजों के लिए सर्वाधिक लाभकारी सिद्ध हुई है जो कि मोटापा, एलर्जी, फीवर, विटिलिगो, सोरायसिस, एसिडिटी, क्रोनिक अपच, नाक की बीमारी, सूजन, मनोवैज्ञानिक विकार, त्वचा विकार तथा अस्थमा जैसी बीमारी से परेशान होते है। आयुर्वेद के अनुसार वमन पद्धति के उपचार से कफ दोष का निवारण किया जाता है।

विरेचन

इस पद्धति से पेट में जमा विषाक्त पदार्थों को शरीर से बहार निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में मुख्यतः आयुर्वेदिक दवाएं एवं कुछ तरल द्रव्य काढ़ो को प्रयोग में लाया जाता है। यह चिकित्सा उन लोगों के लिए वरदान साबित हुई है जो लोग पीलिया, जीर्ण ज्वर, मधुमेह, दमा, दाद जैसे त्वचा विकार, पाचन विकार, कब्ज, हाइपरएसिडिटी, विटिलिगो, सोरायसिस, सिरदर्द, एलिफेंटियासिस एवं स्त्री रोग संबंधी विकार जैसी बीमारी से ग्रसित होते है। शरीर में यदि पित्त की अधिकता हो जाती है तो उसे विरेचन पद्धति के द्वारा ही संतुलित किया जाता है।

नस्‍यम्

नस्यम कर्म चिकित्सा में औषधियों का प्रवेश नाक के द्वारा कराया जाता है। इस पद्धति से मरीज के सिर में जमा विषाक्‍त पदार्थ नस्यम् चिकित्सा द्वारा बाहर निकले जाते हैं। इसके बाद मरीज के सिर एवं कंधों पर हल्की-हल्की मालिश भी की जाती है। जो लोग माइग्रेन, सिर में दर्द, PCOD/PCOS, हार्मोनल असंतुलन, ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया, स्मृति और आंखों की दृष्टि में सुधार, अनिद्रा, अतिरिक्त बलगम, साइनस/साइनसिसिस की उत्तेजना, चेहरे में हाइपर पिग्मेंटेशन, बालों का प्री-मेच्योर ग्रेइंग, सिरदर्द / माइग्रेन की स्पष्टता, गंध और स्वाद की हानि, गर्दन संबंधी परेशानी, आवर्तक राइनाइटिस, नाक की बीमारी, न्यूरोलॉजिकल डिसफंक्शन, पैरापेलिया, गर्दन संबंधी स्पोंडिलाइटिस जैसी समस्याओं का सामना कर रहें है उनके लिए यह प्राचीन चिकित्सा रामबाण का काम करती है। कफ दोष का निवारण भी नस्‍यम् पद्धति से किया जाता है।

बस्ती कर्म

बस्ती पद्धति में कुछ विशेष आयुर्वेदिक तरल द्रव्यों (काढ़ा) का प्रयोग किया जाता है। इन तरल द्रव्यों में तेल,धी,दूध एवं अन्य आयुर्वेदिक तरल द्रव्य सामिल है। इस पद्धति के माध्यम से पुरानी से पुरानी बीमारी को ठीक करने में मदद मिलती है। यह चिकित्सा ऐसे लोगों लिए बहुत ही कारगर है जिनको वात दोष की अधिकता है। वात दोष से छुटकारा पाने में यह पद्धति “संजीवनी” का काम करती है। जो लोग वात-गठिया, परपलेजिया, कब्ज, पाचन विकार, पीठ दर्द और कटिस्नायुशूल, हेपेटोमेगाली, मोटापा, बवासीर, यौन विकलांगता, बांझपन, बवासीर, कब्ज एवं मोटापे जैसी समस्या का शिकार है तो उन्हें यह चिकित्सा पद्धति बहुत ही अच्छा लाभ पहुंचाती है।

रक्तमोक्षण

इस चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत दूषित रक्त को ठीक किया जाता है। यह उन बीमारियों में बहुत ही लाभकारी होती है जो खून में खराबी के कारण उत्पन्न होती है। इस प्रक्रिया में किसी एक विशेष आयुर्वेदिक तकनीकी के द्वारा दूषित रक्त को शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है। जो लोग त्वचा संबंधी बीमारी जैसे कील-मुंहासे,आमवाती गठिया, त्वचा रोग, महिलाओं में हॉट फ्लश की तरह पित्त दोष, हाइपरसिटी, उच्च रक्तचाप, वैरिकाज नसों आदि, चर्म रोग, त्वचा से संबंधित बीमारी, एक्जिमा इत्यादि है तो उन्हें आयुर्वेद की रक्तमोक्षण पद्धति बहुत ही कारगार साबित होती है।

यह पंचकर्म चिकित्सा के पांच प्रमुख कर्म है। इसके अतिरिक्त बहुत सारे उपकर्म भी होते है। जैसे:

  • अभ्यंगम / अभ्यंग आयुर्वेदिक मालिश
  • चेहरा उपचार – हर्बल पेस्ट द्वारा
  • मान्या बस्ती / यूनानी बस्ती: मेडिकेटेड ऑयल द्वारा
  • हरिया बस्ती: औषधीय तेलों के द्वारा
  • जानू बस्ती: मेडिकेटेड ऑइल द्वारा
  • कटि बस्ती
  • किजी आयुर्वेद उपचार या पोटली स्वेद
  • नेत्र तर्पणम् / अक्षी तर्पणम्
  • पिजिचिल मसाज
  • शिरोधारा
  • उद्वर्तनम / आयुर्वेदिक पाउडर मालिश- पूरे शरीर को धीरे से मालिश किया जाता है
  • उत्तर बस्ती – औषधीय हर्बल घी / तेल का प्रयोग

इन पंचकर्म चिकित्सा से आयुर्वेदिक चिकित्सक बहुत ही जल्दी रोगों का निदान कर देते है। यदि आयुर्वेद चिकित्सा का चमत्कार बहुत ही कम समय में देखना चाहते है तो किसी अच्छे पंचकर्म चिकित्सक से परामर्श जरुर लें।